बिहार जाति आधारित गणना 2023 – किस्सा और विरोध

बिहार में सात जनवरी २0२३ से जाति आधारित जनगणना की प्रक्रिया शुरू हुई। बिहार में यह सर्वे करवाने की जिम्मेदारी सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट (जीएडी) को सौंपी गई है।] बिहार सरकार मोबाइल फोन ऐप (बीजगा (बिहार जाति आधरित गणना)) के जरिए हर परिवार का डेटा डिजिटली इकट्ठा करने की योजना बना रही है।]बेल्ट्रॉन (बिहार स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड), आईटी सहायता प्रदान करने वाली बिहार सरकार की एक एजेंसी ने मोबाइल ऐप विकसित करने के लिए महाराष्ट्र स्थित एक निजी फर्म ट्रिगिन टेक्नोलॉजीज की सेवाएं लीं,जो गूगल प्ले पर उपलब्ध है।[9][10] यह डेटा को क्लाउड पर होस्ट करेगा।[11] इस सर्वे में शामिल लोगों को पहले ही आवश्यक ट्रेनिंग दे दी गई है।[12] जीएडी ने जातीय जनगणना सर्वे का ब्लूप्रिंट तैयार किया है। यह जनगणना दो चरणों में होगी।[13] बिहार सरकार की सूची में 214 जातियां हैं।[14][15] सूची के अनुसार अनुसूचित जाति में 22, अनुसूचित जनजाति में 32, पिछड़ा वर्ग में 30, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में 113 और उच्च जाति में 7 की गणना करनी है। [16]

बिहार सरकार ने 6 जून 2022 को बिहार में जाति सर्वेक्षण कराने के लिए अधिसूचना जारी की थी।[17] इस काम में बिहार सरकार आकस्मिकता निधि (कंटीजेंसी फंड) से 500 करोड़ रुपये खर्च करेगी,[18][19][20] जबकि 5 लाख कर्मचारी मिलकर पूरे राज्य में इस सर्वे को अंजाम देंगे।[21][22] इसमें सरकारी कर्मचारी के अलावा आंगनबाड़ी सेविका और जीविका दीदी भी काम करेंगी। मई 2023 तक इस सर्वे को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।[23]

बिहार में जाति आधारित गणना के लिए पोर्टल को तैयार कर लिया गया है।[24] बिहार में जाति आधारित गणना के लिए डिजिटल काम का जिम्मा दिल्ली की कंपनी ट्रिगिन टेक्नोलॉजीज को सौंपा गया है।[25]

पहला चरण[संपादित करें]

बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण का पहला चरण 7 जनवरी, 2023 से शुरू हुआ जो 21 जनवरी को समाप्त हुआ।[26] पहले चरण में राज्य के सभी घरों की संख्या गिनी और दर्ज की गई।[27] पहले चरण के आकड़ों के आधार पर दूसरे चरण की गणना होगी। प्रथम चरण में एकत्रित किए गए सभी आंकड़ों को अब इस पोर्टल पर अपलोड किया जायेगा और ये आंकड़े मोबाइल एप पर द्वितीय गणना के समय प्रगणक और पर्यवेक्षकों को उपलब्ध होंगे। पहले चरण में ढाई करोड़ से अधिक परिवारों की हुई गिनती जाति गणना के पहले चरण में 38 जिलों में बिहार भर (जिनमें 534 ब्लॉक और 261 शहरी स्थानीय निकाय हैं), के करीब दो करोड़ 58 लाख 90 हजार 497 परिवारों तक गणना कर्मियों ने पहुंच कर मकानों की नंबरिंग की।[28][29] पहले चरण में परिवार के मुखिया का नाम और वहां रहने वाले सदस्यों की संख्या को अंकित किया गया था।[7][30] सात जनवरी से शुरू हुए पहले चरण की जाति गणना में पांच लाख 18 हजार से अधिक कर्मी लगाये गये थे। पटना जिले में 14.35 लाख परिवारों का हुआ सर्वेक्षण,[31] छुटे हुए परिवार जिला जाति गणना कोषांग को दे सकते जानकारी।

दूसरा चरण

सर्वेक्षण के दूसरे चरण में जो 15 अप्रैल से 15 मई होना है, घरों में रहने वाले लोगों, उनकी जाति,, उपजातियों, सामाजिक-आर्थिक स्थिति आदि को एकत्र किया जाएगा। सर्वेक्षण 31 मई, 2023 को समाप्त होगा। इस चरण में, 3.04 लाख से अधिक प्रगणक उत्तरदाताओं से जाति सहित 17 प्रश्न पूछेंगे।[34][35] जबकि सभी 17 प्रश्न अनिवार्य हैं,[36][37] प्रत्येक प्रगणक को 150 घरों तक पहुंचने का लक्ष्य दिया गया है। जबकि सभी 17 प्रश्न अनिवार्य हैं, आधार संख्या, जाति प्रमाण पत्र संख्या और परिवार के मुखिया का राशन कार्ड नंबर भरना वैकल्पिक है।[38] बिहार सरकार ने सूबे की 215 अलग-अलग जातियों के लिए अलग-अलग कोड निर्धारित किए हैं।[39][40] किसी विशेष जाति की संबंधित उप-श्रेणियों को एक एकल सामाजिक इकाई में मिला दिया गया है,[41] और उनके पास जाति-आधारित हेडकाउंट के महीने भर के दूसरे चरण के दौरान उपयोग के लिए एक संख्यात्मक जाति कोड है।[42] वहीं इस चरण में नाम दर्ज कराने को लेकर विशेष सख्ती रहेगी। अगर कोई दो बार नाम लिखाने का प्रयास करेगा तो अब एप ऐसे लोगों को चिन्हित कर लेगा। राज्य के बाहर रहने वाले लोगों के नाम भी दर्ज किये जायेंगे।[43] पटना जिले में 12 हजार 831 गणना कर्मियों को 15 अप्रैल से 15 मई तक 73 लाख 52 हजार 729 लोगों की गणना करनी है।

15 अप्रैल 2023 को, नीतीश कुमार ने बख्तियारपुर स्थित अपने पैतृक घर से जाति आधारित सर्वेक्षण के दूसरे चरण का शुभारंभ किया।[44][45] 22 जनवरी २०२३ से लेकर दूसरे चरण की समाप्ति तक जन्म लिए नवजात की गणना नहीं हो रही है।[46] नीतीश कुमार ने बताया कि डाटा का काम पूरा होने के बाद जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट बिहार विधानसभा और बिहार विधान परिषद के पटल पर रखी जाएगी। उसके बाद रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी। गणना के दूसरे चरण का कार्य 15 अप्रैल से 15 मई, 2023 तक सभी 261 निकायों व 534 प्रखंडों में चलेगा।[47] 16 अगस्त 2023 को जाति आधारित गणना की डाटा इंट्री का काम पूरा हो गया

किस्सा और विरोध

अप्रैल 2023 में, जातिगत जनगणना के दौरान एक घटना हुई कि बिहार के अरवल जिले के वार्ड नंबर 7 के एक रेड-लाइट एरिया में लगभग 40 महिलाओं ने रूपचंद नाम के एक पुरुष को अपना पति घोषित कर दिया। उनमें से कुछ ने अपने पिता और बच्चों के नाम के रूप में रूपचंद का नाम भी बताया। जब पूछताछ की गई तो पता चला कि रूपचंद कोई आदमी नहीं है। इस इलाके के लोग पैसे को रूपचंद कहते हैं।

पटना जिले के मसौढ़ी और धनरूआ जैसे कुछ स्थानों पर, लोहार (लोहार) समुदाय के सदस्यों ने यह कहते हुए जाति सर्वेक्षण का बहिष्कार किया कि बिहार सरकार उन्हें लोहरा/लोहारा या कमार (बढ़ई) जाति के अंतर्गत वर्गीकृत करना चाहती है।

कानूनी लड़ाई

20 जनवरी 2023 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जाति आधारित जनगणना करने के लिए बिहार सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली विभिन्न दलीलों पर विचार करने से इनकार कर दिया। जाति-आधारित सर्वेक्षण के खिलाफ यूथ फॉर इक्वेलिटी समूह सहित कई याचिकाकर्ताओं द्वारा याचिका दायर की गई थी।[बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि यह कवायद जाति जनगणना नहीं है, बल्कि यह एक जाति सर्वेक्षण है।] 4 मई 2023 को, पटना उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगा दी, और राज्य सरकार को अब तक एकत्र किए गए सर्वेक्षण डेटा को सुनवाई की अगली तारीख (3 जुलाई, 2023) तक संरक्षित रखने का निर्देश दिया। बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय को सूचित किया कि “सर्वेक्षण” का 80% पूरा हो गया था।पटना हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में बिहार सरकार से 11 बिंदुओं पर सवाल पूछे। बिहार सरकार ने प्रतिवाद किया कि एक केंद्रीय कानून, सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 2008 राज्य सरकार को जाति सहित सभी प्रकार की जनगणना और सर्वेक्षण करने का अधिकार देता है।[65] 7 जुलाई 2023 को, पटना उच्च न्यायालय ने सर्वेक्षण के विभिन्न पहलुओं को चुनौती देने वाली कुल 8 जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। 1 अगस्त 2023 को, पटना उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि बिहार में जाति सर्वेक्षण कराना वैध और कानूनी है। मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए अपने 101 पेज के फैसले में आदेश पारित किया। बिहार के जाति-आधारित सर्वेक्षण का दूसरा चरण 2 अगस्त 2023 को फिर से शुरू हुआ।[74] 21 अगस्त 2023 को, पटना उच्च न्यायालय ने जाति सूची से ट्रांसजेंडरों को हटाने की मांग करने वाली एक रिट याचिका का निपटारा किया, और कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति बिहार सरकार को एक जाति के रूप में न माने जाने के लिए अभ्यावेदन दे सकते हैं।[75][76] बिहार सरकार ने इस याचिका पर जवाबी हलफनामा दायर कर अदालत को सूचित किया था कि 25 अप्रैल 2023 को गणनाकारों को लिंग के लिए तीन विकल्प रखने का निर्देश देकर इस विसंगति को दूर किया गया था।

21 अगस्त 2023 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने केंद्र सरकार से सर्वेक्षण के संभावित परिणामों के संबंध में सात दिनों के भीतर जवाब देने को कह और बाद में मामले को 28 अगस्त 2023 को फिर से सुनवाई के लिए निर्धारित कियाकेंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया कि भारत की जनगणना अधिनियम 1948 केवल केंद्र सरकार को जनगणना और जनगणना जैसी कार्रवाई करने की अनुमति देता है। बाद में शाम को, यह अपने पिछले हलफनामे से पीछे हट गया और एक नया हलफनामा दायर किया जिसमें दावा किया गया कि पैराग्राफ “अनजाने में घुस गया”। बिहार सरकार ने अपनी पहले बताई गई स्थिति को दोहराया कि सांख्यिकी संग्रह अधिनियम, 2008 उसे सामाजिक न्याय के हित में इस तरह की गणना प्रक्रिया आयोजित करने का अधिकार देता है। 6 सितंबर 2023 को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने मामले को 3 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दिया और स्पष्ट किया कि उसने सर्वेक्षण के प्रकाशन पर कोई रोक नहीं लगाई है।

गणना रिपोर्ट

वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर बिहार में परिवार की संख्या एक करोड़ 89 लाख थी। 12 वर्षों में इसमें एक करोड़ 61 लाख वृद्धि होने की संभावना जताई जा रही है। इसी तरह राज्य में एक से सवा करोड़ घर या बसावट होने का भी आंकलन किया जा रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार पटना में प्रति परिवार में सदस्यों की संख्या औसतन 4.1 थी जो 2022 में बढ़ाकर 5.3 हो गई है यानी प्रति परिवार सदस्यों की संख्या में 1.2 की बढ़ोतरी हुई है। पटना जिले की जनसंख्या 58 लाख से बढ़कर 73 लाख हो गई है। पिछले 11 वर्षों में पटना की जनसंख्या में 15 लाख से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। पटना जिले की जनसंख्या वृद्धि दर 2011 की तुलना में 2 अधिक बढ़ी है। परिवारों की संख्या भी चार लाख से अधिक बढ़ी है। यह 21 जनवरी तक कराई गई जाति आधारित गणना के पहले चरण की रिपोर्ट में सामने आया है।

2 अक्टूबर 2023 को जारी बिहार सरकार की बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण 2022 रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की 13.07 करोड़ आबादी में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 36.01 प्रतिशत है। ओबीसी, ईबीसी मिलकर बिहार की कुल आबादी का 63% हिस्सा हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट से यह भी पता चला कि बिहार में हिंदुओं की आबादी 81.9986% है जबकि मुस्लिमों की हिस्सेदारी 17.7088% है। लगभग 190 जातियाँ ऐसी हैं जिनकी जनसंख्या एक प्रतिशत से भी कम है।

बिहार के जाति समूह
जाति समूहजनसंख्या (%)
ओबीसी27.12%
ईबीसी36.01%
अनुसूचित जाति19.65%
सामान्य वर्ग15.52%
अनुसूचित जनजाति1.68%
जातिजनसंख्याप्रतिशत
यादव1,86,50,11914.2666%
राजपूत45,10,7333.4505%
कुर्मी37,62,9692.8785%
ब्राह्मण47,81,2803.6575%
तेली36,77,4912.8131%
मल्लाह (निषाद)34,10,0932.6086%
नोनिया(चौहान)24,98,4741.9112%
बनिया30,26,9122.3155%
भुमिहार37,50,8862.8693%
तुरहा (तुरैहा)4,67,8670.3579%
कोइरी55,06,1134.212%
दुसाध69,43,0005.3111%
मुसहर40,35,7873.0872%
कायस्थ7,85,7710.6011%
चमार(रविदास)68,69,6645.255%

अन्य राज्यों में हुए जाति सर्वेक्षण

  1. केरल का सामाजिकआर्थिक सर्वेक्षण 1968 : १९६८ में, ई० एम० एस० नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार ने जातिगत असमानताओं का आकलन करने के लिए केरल राज्य में प्रत्येक निवासी के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण का आदेश दिया। 2011 की जनगणना तक, यह सर्वेक्षण स्वतंत्रता के बाद के भारत में आयोजित एकमात्र जाति-आधारित गणना थी। सर्वेक्षण बहुत निर्णायक नहीं था, क्योंकि इसमें कई असंबंधित जातियों को एक समूह में मिला दिया गया था (उदाहरण के लिए, अंबालावासी और तमिल ब्राह्मण मलयाली ब्राह्मणों के साथ समूहीकृत किया गया)। स्वतंत्र भारत में जाति-गणना का सिर्फ एक उदाहरण मिलता है। सर्वेक्षण में पाया गया कि उच्च जाति के व्यक्तियों के पास अधिक भूमि है और सामान्य आबादी की तुलना में उनकी प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत अधिक है। सर्वेक्षण में पाया गया कि राज्य की 33% आबादी अगड़ी जाति की थी, जिनमें से लगभग आधी सीरियाई थीं। ईसाई। सर्वेक्षण के अनुसार, 13% ब्राह्मण, 6.8% सिरो-मालाबार कैथोलिक, 5.4% जैकोबाइट और 4.7% नायरों के पास 5 एकड़ से अधिक भूमि थी। इसकी तुलना एझावाओं के 1.4%, मुसलमानों के 1.9% और अनुसूचित जातियों के 0.1% से की गई, जिनके पास इतनी ज़मीन थी।
  2. तेलंगाना का समग्र कुटुंब सर्वेक्षण : रिपोर्ट से पता चलता है कि तेलंगाना की लगभग 36.9 मिलियन की आबादी विभिन्न जाति समूहों में वितरित है। अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) क्रमशः जनसंख्या का लगभग 18.48% और 11.74% प्रतिनिधित्व करते हैं। अधिकांश आबादी पिछड़ी जातियों (बीसी) से संबंधित है, जो आबादी का 53.58% है। अन्य जातियाँ लगभग 16.03% हैं, जबकि धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी लगभग 10.65% हैं।[
  3. कर्नाटक जाति जनगणना 2017 : कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण की जानकारी देने के लिए 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा आदेशित सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण 2023 तक प्रकाशित नहीं हुआ है।[

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