बिहार म्यूजियम के अपर निदेशक, अशोक’कुमार सिन्हा-

देश_परदेश

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ख्यात लेखक और बिहार म्यूजियम के अपर निदेशक, अशोक’कुमार सिन्हा की चौथी यात्रा वृतांत की पुस्तक ‘देश परदेश’ का आज ‘क्राफ्ट चौपाल’ और ‘जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनैतिक शोध संस्थान, पटना,’ के संयुक्त तत्वाधान में विमोचन किया गया। विमोचन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ राम वचन राय और आलोक धन्वा की गौरवमयी उपस्थिति रही। गण्यमान वक्ताओं में डॉ शिव नारायण, ममता मेहरोत्रा, डॉ काशिम खुर्शीद, नरेंद्र पाठक, भैरवलाल दास, मुसाफ़िर बैठा, अरुण नारायण ,रमेश ऋतुम्भर आदि के विद्वतापूर्ण भाषण हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत में अतिथियों के स्वागत से किया गया। डॉ रामवचन राय को बुके और शॉल से डॉ शंभु कुमार सिंह ने किया साथ ही अन्य अतिथियों का भी स्वागत बुके दे कर किया गया।
यह यात्रा वृतांत अशोक कुमार सिन्हा जी की भारत और विदेशों की विभिन्न यात्राओं का रसमय चित्रण है। यह चित्रण बेहद ही मनोरम है जो हम पाठकों को घर बैठे ही यात्राओं का जीवंत अनुभव कराता है। इस पुस्तक से हमें कई रोचक परंपराओं की भी जानकारी मिलती है। देश विदेशों की विरासतों की समृद्धि से रूबरू होते हैं। इसे पढ़ हम यह भी सीखते समझते हैं कि एक नागरिक के कर्तव्य और अधिकार क्या होते हैं और हम अपने शहर एवं राज्य को कितना स्वच्छ और शानदार रख सकते हैं। कुछ दृश्यों में इन्होंने हवाई यात्रा के डर के साथ कुछ गुदगुदाने वालेे परिदृश्यों का भी चित्रण किया है, इस तरह से पठनीयता के स्तर पर यह मनोरंजक के साथ रोमांचक भी हो जाता है। इसे जरूर पढ़ने की कोशिश करें। यह पुस्तक यात्रा वृतांत का बाइस्कोप है जिसमें भिन्न भिन्न अध्याय हमें आकर्षित करता है।


कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन करते हुआ।

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क्राफ्ट चौपाल काउंसिल और जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान के सौजन्य से अशोक कुमार सिन्हा की पुस्तक ‘देश परदेश’ का लोकार्पण समारोह दिनांक 15 जून 2014 को जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक संस्थान के सभागार में संपन्न हुआ। सुप्रसिद्ध साहित्यसेवी डॉ. राम वचन राय और आलोक धन्वा के कर कमलों द्वारा पुस्तक का लोकार्पण संपन्न हुआ। इस अवसर पर डॉ. शिवनारायण, ममता मेहरोत्रा, डॉ. कासिम खुर्शीद, भैरवलाल दास, मुसाफिर बैठा, नरेंद्र पाठक जी ने अपने विचार व्यक्त किए।
मंच संचालन अरुण नारायण ने किया।

श्री भैरवलाल दास जी बोलते काम है लिखते ज्यादा है उन्होंने चंपारण को कैसे तलाशा यह मैंने उनकी कलम से ही जाना।


कई विधाओं में उन्होंने लेखनी चलाई है। जीवनी विधा में काफी दखल रही। मधुकर सिंह। जेपी। कर्पूरी ठाकुर।

मुसाफिर बैठा जी ने पुस्तक के बारे में विस्तार से बताया। कहा कि यह लगभग पौने दो सौ पृष्ठों की किताब चौदह अध्याय में विभक्त है। चार वृत्तांत विदेश से हैं और दस देश से। विदेशों में मैक्सिको, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मॉरीशस का सांस्कृतिक सामाजिक वर्णन है।

लेखक अशोक कुमार बिहार सरकार के विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं और उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान में कार्य करते हुए ज्यादा भ्रमण किया है। ज्यादातर स्वैच्छिक और गैर सरकारी भ्रमण किया है और कुछ जो प्रशासनिक दायित्व का निर्वहन करते हुए भ्रमण किया है। जिसमें व्यस्तता के कारण बहुत पसंदीदा जगहों का भ्रमण वह नहीं कर पाए। उन्हें यह मलाल रह गया है कि अगर वह भ्रमण सरकारी नहीं होता तो उन जगहों का कहीं बेहतर एक्सप्लोर कर पाते। पुस्तक सुरुचिपूर्ण हैं जो पढ़ने की उत्सुकता जगाती हैं।

लेखक की जेपी, गांधी के प्रति अगाध श्रद्धा है इसलिए उनसे जुड़ी जगहों का भ्रमण इनकी प्राथमिकता रही है। उन्होंने यात्रा के दौरान व्यक्तिगत विचारों को भी प्रतिफलित किया है। निजी सरोकार भी वृत्तांत में परिलक्षित हुए हैं।

लेखक अशोक सिन्हा ने अपनी पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए बताया कि अभी तक उनकी छत्तीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।यात्रा वृत्तांत की चार पुस्तकें आ चुकी हैं। देश परदेस उनकी
चौथी पुस्तक है। नामवर सिंह ने उनकी तीन और केदारनाथ सिंह ने चार पुस्तक का लोकार्पण कर चुके हैं। नीतीश कुमार, मीरा कुमार और लालू यादव भी उनकी पुस्तक का लोकार्पण कर चुके हैं।

अशोक जी का जन्म एक सामान्य पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ। दादी धर्मभीरू महिला थीं। उन्होंने जब पारसनाथ की यात्रा कीं तो पुत्र का नाम पारसनाथ रख दिया और जब केदारनाथ की यात्रा की तो पुत्र का नाम केदारनाथ रख दिया। वो यात्रा से लौटती थीं तो प्रसाद के किस्सों का पिटारा भी साथ लाती थीं और आंगन में बैठकर सबों को किस्सा सुनाती थीं। अशोक भी किस्सा सुनते थे और किस्सागोई सीखते थे। अशोक जी के पिताजी की मर्चेंट नेवी में नौकरी लग गई तो उनकी देश विदेश की यात्रा होती रही। उनकी चिट्ठियां आती थीं तो वहां की कथाएं रहती थीं। जब वे आते तो तमाम तरह के किस्से सुनाते थे। एक कथाकार के रूप में अशोक जी का यात्रा यहीं से शुरू हुआ। अशोक जी को नौ कैबिनेट मंत्रियों के साथ प्राइवेट सेक्रेटरी के तौर पर काम करने का भी मौका मिला तो मंत्री जी के साथ वे यात्राएं करते थे। इन यात्राओं में अनुभवों को उन्होंने लेखनी के तौर पर संजो कर रखा। प्रसिद्ध कथाकार
मधुकर सिंह जी ने अशोक कुमार सिन्हा जी को यह प्रेरणा दी कि आप जहां कहीं भी जाइए तो उस बारे में लिखिए जरूर। अशोक जी ने नौ महापुरुषों की जीवनियां लिखीं। जगदेव प्रसाद, जेपी, कर्पूरी ठाकुर।l, राजेंद्र बाबू इसमें शामिल हैं
यात्रा सरकारी होती तो भी कामकाज, रीति रिवाज, भाषा, रहन सहन, भाषा, लोकसंस्कृति आदि को महसूस करने की कोशिश की।

अशोक जी ने पुस्तक में सबसे लंबा वर्णन मैक्सिको का किया है। मैक्सिको की स्थिति पाताल लोक जैसी है। ग्लोब में सबसे नीचे। हवाई यात्रा 32 घंटे से भी ज्यादा लगते हैं। मैक्सिको की कोई सीधी फ्लाइट नहीं है। अशोक जी की यात्रा इस्तांबुल होकर थी। इस यात्रा में अंग्रेजी के विश्व भाषा होने का भ्रम टूटा। कई देशों में अंग्रेजी बोलने और हिंदी बोलने में कोई फर्क नहीं है। क्योंकि लोग दोनों ही भाषा नहीं समझते हैं। स्थानीय भाषाओं का महत्व है। दूसरी समस्या समय में अंतर को लेकर हुई। 15 घंटे की यात्रा में सूरज की रोशनी के दर्शन नहीं हुए। सिर्फ रात ही रात के दर्शन हुए। लंबी हवाई यात्रा में जेट लेग की समस्या होती है। इस बीमारी से पहली बार सामना हुआ था। अशोक जी ने पुस्तक में इसको लेकर भी रोचक वर्णन किया है। लोग अपनी भाषा के प्रति कितने जागरूक हैं यह मैक्सिको जाकर महसूस हुआ। मैक्सिको में अंग्रेजी जानने वालों की संख्या न के बराबर है। हमलोग गर्व करते हैं कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता बहुत समृद्ध है। लेकिन सिर्फ मैक्सिको में 173 संग्रहालय और कहीं भी प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं।
हमलोग भारत की प्राचीन सभ्यता होने पर गर्व करते हैं लेकिन माया सभ्यता काफी पुरानी सभ्यता है। यह मैक्सिको में ही विकसित हुई। सूर्य, नाग के पूजा की संस्कृति मैक्सिको में देखने को मिली। म्यूजियम में हनुमान जी की मूर्ति देखने को मिली। हमारी जो आदिवासी संस्कृति है उससे काफी मिलती जुलती है। अस्सी फीसदी घरों में खाना नहीं बनता है। लोग बाहर ही ज्यादा खाते हैं। स्ट्रीट फूड का ही प्रचलन है। साफ सफाई ऐसी कि क्या कहेंगे। आबादी का तीस प्रतिशत कुत्ते की आबादी है। वहां कुत्ते को घुमाकर लोग 40 हजार रुपया कमाते हैं। सड़क पर अगर कुत्ता पोट्टी करते हैं तो मालिक उसे उठाकर कूड़ेदान में डाल देते हैं।

ममता मेहरोत्रा जी बोलीं, –

अशोक जी जब मैक्सिको में थे तो उनका आर्कियोलॉजिकल फैक्ट्स फेसबुक पर पोस्ट करते थे। मैं उसे पढ़कर उनसे चर्चा करती थी। दशकों पुराना संबंध है। अशोक जी में विभिन्न सभ्यताओं को जानने की जो उत्सुकता है, वह दुर्लभ है। कई लोग यात्रा करते हैं पर उनमें यह पारखी नजर के दर्शन नहीं होते हैं। हम जहां भी यात्रा करें एक डायरी जरूर मेंटेन करें। अनुभवों को लिखते चलें। दादी और पिता की किस्सागोई का इनपर प्रभाव पड़ा और उस गुण को इन्होंने ग्रहण किया। अशोक जी साहित्य के क्षेत्र में सशक्त हस्ताक्षर हैं।

नई धारा पत्रिका के संपादक शिवनारायण जी बोले –

मेरी जो अनुभूति हुई जिस जीवंतता के साथ अशोक जी अपने संस्मरण सुना रहे थे, काश वह जारी रह पता। संस्मरण की यह चौथी पुस्तक है। काका कालेलकर, राहुल सांकृत्यायन और धर्मवीर भारती तक जो यात्रा वृत्तांत लिखे उसे इतिहास का कच्चा माल समझा जाता था लेकिन अब इसे साहित्य के एक विशेष अंग के रूप में अंगीकृत करते हैं। यह कथेतर गद्य के तौर पर स्वीकार किया जाता है। रिपोर्ताज, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत सभी कथेतर गद्य में स्वीकार्य हैं। इसे पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए। हम कई तरह से यात्रा करते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि समाज को निरखने परखने की आपकी दृष्टि क्या हैं। यह आपको दूसरों से अलग करती हैं। दुनिया विविधताओं से भरी पड़ी हैं। आपमें अगर भाव प्रवणता है। तो आपके पास दुनिया को जानने समझने की अपार संभावनाएं हैं।

एक प्रसंग का उल्लेख किया है। विट्ठल भाई पटेल साबरमती आश्रम में कुछ कर रहे होते हैं। गांधी जी पूछते हैं क्या कर रहे हैं? विट्ठल भाई कहते हैं, आपने जो कहा था, वही कर रहे हैं। दरअसल गांधी जी ने विदेशी वस्तुओं को जलाने की बात कही थी और विट्ठल भाई कोई विदेशी सिगरेट सुलगाए बैठे थे।
छोटी छोटी बातों, छोटी छोटी घटनाओं को देखने की क्षमता आपको संवेदनशील लेखक बनाता है।

राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी होते हुए भी साहित्यिक अभिरुचि से परिपूर्ण हैं। अशोक जी भाषा के साधक हैं। इसलिए छत्तीस पुस्तकों का लेखन कर पाए।


काशिम खुर्शीद, शायर बोलते हैं।

अगर आप किसी शख्स को समझना चाहते हैं आप उसके साथ यात्रा कीजिए। क्योंकि यात्रा में हम खुलते हैं। हम यात्राएं तो बहुत करते हैं लेकिन इसे केवल तफरीह क्यों मान लेते हैं। कोई सभ्यता, संस्कृति, परंपरा, समाज में डुबकी कौन लगाता है। सूक्ष्म ऑब्जर्वेशन जरूरी होता है लेखन में। मॉरीशस तो कई लोग गए होंगे लेकिन मजदूरों के दर्द को कौन लिखता है। लेकिन अशोक जी ने इस पर लेखनी चलाई। यह व्यक्ति की संवेदनशीलता दर्शाती है।

हकीकत यह है कि कोई भी संस्मरण बोझिल नहीं करता है। सफरनामे की जो रवायत होती है उसमें आप लेखक के साथ यात्रा कर रहे होते हैं।


भैरवलाल दास जी बोलते हैं –

मैं इस किताब में गांधी जी को पढ़ना चाहता हूं। प्रकृति और सुंदरता का जो वर्णन किया है वह इन्हें चित्रकार बनाता है। इनके गद्य में भी कविता की मिठास है। इन्होंने भितिहरवा आश्रम के बारे में लिखा है। साबरमती आश्रम के बारे में लिखा है । अशोक जी जब साबरमती आश्रम में जाते हैं तो उनकी अपनी दृष्टि परिलक्षित होती है।


आलोक धन्वा जी बोलते हैं –

आलोक धन्वा जी ने किताब को अत्यंत पठनीय बताया। उन्होंने शिलांग और मैक्सिको के संस्मरण को अद्भुत बताया। अशोक जी भाषा के मामले में अतुलनीय है। एक वर्णन बहुत अच्छी लगी। मैक्सिको में एक सड़क के ऊपर कई सड़क चल रही है।
अशोक जी शिल्प को जानते हैं और भाषा को भी जानते हैं।

राम वचन राय जी बोलते हैं


‘देश परदेश’ बहुत ही रोचक है। हिंदी में संस्मरण तो लिखा जाता रहा है, यात्रा वृत्तांत बहुत कम लिखा गया है। लोग तीर्थाटन करते थे लेकिन यात्रा लेखन नहीं करते थे। एक तो अर्थाभाव, दूसरा प्रबुद्धता की कमी तो यात्रा तो करते रहे हैं लेकिन लेखन नहीं। बंगला समाज में सैर सपाटों की प्रवृत्ति रही है। दक्षिण में भी। महाराष्ट्र में भी। लोग यात्रा के लिए पैसे बचाते हैं। वे यात्रा करते हैं और यात्रा के संस्मरण को कलमबद्ध भी करते हैं। हिंदी पट्टी में ऐसा कम देखने को मिलता है लेकिन अशोक जी ने इस मिथक को तोड़ा है। देश के दूसरे भाग के लोग हिंदी पट्टी के लोगों को हिकारत की नजर से देखते रहे हैं। लेकिन स्थिति बदली है। समृद्धि आ रही है। परिस्थितियां बदल रही हैं। यात्रा वृत्तांत लिखे जा रहे हैं तो यह खुशी की बात है।


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